Thursday, January 4, 2024

लाक्डाउन - Hindi Poem from May 2020

 लाक्डाउन


बात उन दिनों कि थी
बस… चंद ही महीनों के पहले की।
जब हर सुबह घर से निकलना था एक ज़बरदस्ती
हम सबको अंदर रहके करनी थी मस्ती।
हर रोज़ स्कूल और दफ़्तर – क्या बोर
और बाहर – क्या ट्रैफ़िक, क्या शोर!

मगर एक शाम TV पे आया
वो छप्पन इंच के छती वाला – वही – वो टी वाला।
और वो बोला – "अपने प्यारे देश वासियों
बचके रहना सर्दियों, बुख़ारों ओर खासियों से।
फैल रहा है करोना – मगर आप लोग डरो ना,
बस हो जाओ लाक्डाउन, This will all come down.”

तो हमने भी उनकी भरोसा की –
रोज़ बर्तन, झाड़ू और पोछा की।
बंद कर दिया बाहर घूमना
और शुरू किया अपनी अपनी computer से zoom-ना।

पहले दो तीन हफ़्ते सब ठीक थे।
समय बिताए, नाचना और गाना सीखते।
घर बैठे बैठे देखे हमने सपने रंगीन
कि बाहर क़ाबू में आने लगा Covid-19.

पर जब जब बोतल ख़ाली होने लगे,
और हम सब घर के मालिक से माली होने लगे,
सब को याद आने लगी अपनी बाई
और हर भाई ढूँढने लगा अपना अपना नाई।

अब छप्पन इंच वाले की बात सुनकर हो गए दिन छप्पन
धीरे धीरे याद आने लगा अपना बचपन।
नहीं – तब की नहीं जब हमारे नरम गाल थे!
अरे सोचो यार – जनवरी फ़रवरी इसी साल के!
जब सिनेमा, होटल जाते थे हर रविवार,
और हाथ धोते थे दिन में बस दो चार बार।
जब हम दोस्तों से गले मिलते,
और बच्चे पेड़ के तले मिलते।
बस WhatsApp में करते थे नमस्ते

आज तो दूसरे से मिलने के लिए हाथ तरसते!

जाने कहाँ गए वो दिन,
Social distancing के बिन!

मैं सोच रहा हूँ, अब बहुत हो गया।
मैं तो अंदर रहके अपना दिमाग़ खो गया।
चलो बाहर निकलते हैं, जाएँगे काम पे।
बोझ डालेंगे प्रभु के नाम पे!
दोस्तों से हाथ नहीं तो क्या, नज़रें मिलाएँगे।
जुड़े हाथ chat पे ही क्यों, असल में दिखाएँगे।
रखेंगे आपस में दो मीटर की दूरी
मगर आपसे face to face मिलना है ज़रूरी।

खुली हवा के लिए हाथ चार क्या, चालीस बार धो लेंगे।
और चिंता मत करो – आप से मास्क के पीछे से ही बोलेंगे।

हाँ, वाइरस से थोड़ा डर के रहना तो नीत है,
क्योंकि मित्रों,
डर के आगे तो जीत है!

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